लोकतंत्र वाणी / संवाददाता
नई दिल्ली। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शनिवार को आयोजित सम्मेलन में कहा कि संस्थागत मध्यस्थता केवल विवाद समाधान का एक माध्यम नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। उन्होंने कहा कि समय की मांग है कि संस्थाएं लचीली भी हों और कठोर भी, ताकि वे अपने हितों की रक्षा करते हुए राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकें।
मेघवाल ने अफसोस जताया कि कभी भारतीय परंपरा रही मध्यस्थता की अवधारणा अब कुछ हद तक कमजोर पड़ी है और इसी शून्य का लाभ उठाकर अन्य देश अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के केंद्र बन गए हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि आने वाले समय में भारत इस क्षेत्र में नई भूमिका निभाएगा।
सम्मेलन में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ओएनजीसी के चेयरमैन अरुण कुमार सिंह ने कहा कि समय ही धन है, इसलिए मध्यस्थता प्रक्रिया को “अंतहीन” न बनाकर समयबद्ध बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यावसायिक विवादों का शीघ्र समाधान स्वस्थ कारोबारी माहौल की रीढ़ है।
सिंह ने व्यावसायिक विवादों के मुख्य कारण भी गिनाए—अधिकारियों की अत्यधिक सतर्कता, विक्रेताओं की अव्यावहारिक आशावादिता और अनुबंधों में कठोरता।
विधि सचिव अंजू राठी राणा ने बताया कि सरकार मध्यस्थता और सुलह प्रक्रिया को तेज और सरल बनाने के लिए लगातार प्रयासरत है। उन्होंने विभाग द्वारा हाल ही में जारी उस दिशा-निर्देश का उल्लेख किया जिसमें न्यायिक हस्तक्षेप कम करने और तदर्थ मध्यस्थता के बजाय संस्थागत ढांचे को अपनाने पर बल दिया गया है।
भारतीय अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र के चेयरमैन, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) हेमंत गुप्ता ने कहा कि संस्थागत मध्यस्थता की सफलता के लिए मानसिकता में बदलाव जरूरी है। लोगों को न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थों के बजाय संस्थागत माध्यमों के लाभ समझने होंगे।