कनाडा में भारतीय राजनयिकों को निशाना बनाना पूरी तरह से अस्वीकार्य

लोकतंत्र वाणी / संवाददाता

नई दिल्ली। भारत ने सोमवार को कनाडा के छह राजनयिकों को निष्कासित कर दिया। भारत ने यह फैसला जून 2023 में खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारतीय राजनयिकों के जुड़े होने के कनाडा के हालिया आरोपों के बाद लिया है।

कनाडा की ट्रूडो सरकार वोट बैंक साधने के लिए ऐसा कर रही।

इसके साथ ही भारत ने कनाडा से अपने उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा और अन्य राजनयिकों को भी वापस बुलाने का फैसला किया है। भारत ने कनाडा के उस ‘डिप्लोमैटिक कम्युनिकेशन’ को सिरे से खारिज करते यह कड़ा जवाब दिया है, जिसमें कनाडा ने भारतीय उच्चायुक्त सहित अन्य राजनयिकों पर खालिस्तान समर्थक निज्जर की हत्या में शामिल होने का निराधार आरोप लगाया था।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कार्यवाहक उच्चायुक्त स्टीवर्ट रॉस व्हीलर सहित छह कनाडाई राजनयिकों को 19 अक्टूबर की रात 11:59 बजे से पहले भारत छोड़ने को कहा है। इससे पहले भारत ने कनाडा के दिल्ली स्थित उच्चायोग को समन भी भेजा था, जिसमें कहा गया था कनाडा में भारतीय उच्चायुक्त और अन्य राजनयिकों एवं अधिकारियों को आधारहीन तरीके से निशाना बनाना पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
समन में कहा गया इस बात पर जोर दिया गया कि उग्रवाद और हिंसा के माहौल में ट्रूडो सरकार की कार्रवाई से उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। हमें उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा कनाडाई सरकार की प्रतिबद्धता पर कोई भरोसा नहीं है। इसलिए, भारत सरकार ने उच्चायुक्त और अन्य लक्षित राजनयिकों एवं अधिकारियों को वापस बुलाने का फैसला किया है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा हमने कनाडा को बता दिया है कि कनाडा में भारतीय उच्चायुक्त और अन्य राजनयिकों एवं अधिकारियों को आधारहीन तरीके से निशाना बनाना पूरी तरह से अस्वीकार्य, उसके जवाब में भारत आगे कदम उठाने का अधिकार रखता है।
विदेश मंत्रालय ने कड़ा एतराज जताते हुए कहा यह मुद्दा राजनीति से जुड़ा है, क्योंकि कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं। हमें रविवार को कनाडा से एक डिप्लोमैटिक कम्युनिकेशन मिला था, जिसमें बताया गया है कि कनाडा में चल रही एक जांच में भारतीय उच्चायुक्त और अन्य राजनयिकों का जुड़ाव सामने आया है। भारत सरकार इन बेतुके आरोपों को सिरे से नकारती है। कनाडा की ट्रूडो सरकार वोट बैंक साधने के लिए ऐसा कर रही है।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि अलगाववादियों ने भारत और कनाडा के बीच द्विपक्षीय संबंधों में बड़ी दरार पैदा की है। ट्रूडो के पिता, पूर्व प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो पर नई दिल्ली के साथ संबंधों को ठीक से न संभालने का आरोप लगाया गया था, क्योंकि 1980 के दशक में कनाडाई प्रशासन खालिस्तानी चरमपंथियों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा था।
वहीं अब जस्टिन ट्रूडो की भारत के प्रति आक्रामकता, कनाडाई प्रधानमंत्री की घरेलू स्तर पर गिरती लोकप्रियता और उनके खिलाफ बढ़ते असंतोष के साथ मेल खाती है। इसे अगले वर्ष के संघीय चुनावों से पहले राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सिख समुदाय को लुभाने के रूप में देखा जा रहा है। कनाडा में बढ़ती अपराध दर, संकटग्रस्त हेल्थ सर्विस सिस्टम और बढ़ती कॉस्ट ऑफ लिविंग के बीच, इप्सोस सर्वेक्षण से पता चला है कि केवल 26 प्रतिशत लोग ही ट्रूडो को सर्वश्रेष्ठ पीएम उम्मीदवार के तौर पर देखते हैं। उनकी लोकप्रियता विपक्षी कंजर्वेटिव नेता पियरे पोलीवरे से कम आंकी गई है।
कनाडा में सत्तारूढ़ सरकार को हाल ही में दो चुनावी झटकों का सामना करना पड़ा है। पिछले महीने सत्ताधारी लिबरल पार्टी मॉन्ट्रियल में हार गई, जिसे सुरक्षित सीट माना जाता था। इसके अलावा हाल ही में खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने कमजोर पड़ चुकी लिबरल सरकार से समर्थन वापस ले लिया है, जिससे उबरने के लिए ट्रूडो सरकार भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाकर सारे सिख समुदाय का वोट बैंक अपने पक्ष में करना चाहती है। कनाडा में 7.7 लाख से अधिक सिख हैं, जो चौथा सबसे बड़ा जातीय समुदाय है, जिसमें एक वर्ग खालिस्तान की मांग का समर्थन करता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *