भूखंड आवंटन में पारदर्शिता के लिए बने स्वतंत्र निगरानी तंत्र

लोकतंत्र वाणी / संवाददाता

नोएडा। औद्योगिक विकास प्राधिकरणों (नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरणों) में तेजी से बढ़ते डेवलपर / बिचौलियों के हस्तक्षेप का मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंच गया है। एमएसएमई इंडस्ट्रियल एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर औद्योगिक भूखंड आवंटन में पारदर्शिता के लिए स्वतंत्र निगरानी तंत्र बनाने की मांग उठाई है।

एसोसिसएशन के जिला अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह नाहटा ने प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में कहा है कि प्राधिकरणों में डेवलपर / बिचौलियों का हस्तक्षेप भूमि आवंटन, परियोजनाओं की स्वीकृति और अन्य प्रशासनिक कार्यों में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को बढ़ावा दे रहा है। इनके अनुचित हस्तक्षेप के कारण प्राधिकरण के कार्यों में पारदर्शिता और निष्पक्षता समाप्त हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप उद्योगपति और छोटे उद्यमी (एमएसएमई) अपने व्यवसायों में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना विकास प्राधिकरणों का गठन औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए किया गया है, परंतु यहां तैनात होने वाले अफसरों ने इनकी परिकल्पना को ही बदलकर रख दिया है। प्राधिकरण स्चयं एक डेवलपर (विकासकर्ता) है और उद्यमी (एंड यूजर) है। मतलब, प्राधिकरण की जिम्मेदारी औद्योगिक क्षेत्र का विकास कर भूखंडों का आवंटन सीधे उद्यमियों को करने की है, परंतु प्राधिकरणों में तैनात अफसरों ने इस तरह की व्यवस्था बना दी हैं कि स्वयं के और उद्यमियों के बीच एक अन्य डेवलपर (विकासकर्ता) या यूं कहें की बिचौलिए खड़े कर दिए हैं जो अप्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से औद्योगिक भूखंडों आवंटन कराते हैं और उद्यमियों को महंगे दाम पर बेचकर मोटा मुनाफा कमाते हैं। औद्योगिक भूखंडों का सीधा आवंटन उद्यमियों को नहीं हो पाता।
ऐसे में एक उद्यमी अपनी सारी पूंजी महंगा भूखंड खरीदने में खर्च कर डालता है। उसके पास इतनी पूंजी नहीं बचती कि वह अपना उद्योग सुचारू रूप से चला सके। ऐसे में उद्योग चलाने के लिए उद्यमी को कर्ज लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है और वह वित्तीय संस्थाओं के चंगुल में ऐसा फंस जाता है कि न रोजगार उपलब्ध करा पाता है और सरकार को राजस्व दे पाता है। प्राधिकरण स्वयं एक डेवलपर एजेंसी है तो अपने और एंड यूजर के बीच में एक नया डेवलपर शामिल क्यों किया जाता है। जिन्हें उद्योग स्थापित कर उसका संचालन करना ही नहीं होता तो उन्हें भूखंडों का आवंटन क्यों किया जाता है। ऐसा नहीं कि हमारे देश में बुद्धिजीवियों, नई युवा सोच और नवाचार की कोई कमी है। बशर्ते, इन्हें अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए सही अवसर नहीं मिल पाता। प्राधिकरणों और सरकारी विभागों की कार्यशैली में पारदर्शिता आए तो औद्योगिक विकास के मामले में चीन और अन्य प्रतिद्वंद्वी देशों को टक्कर देना आसान हो जाएगा। अन्यथा देश के उद्यमी और युवा प्रतिभाएं इसी तरह की अव्यवस्थाओं से जूझती रहेंगी।

प्राधिकरणों के तहत किए जाने वाले विकास कार्यों में बिचौलियों की भूमिका न केवल औद्योगिक विकास को धीमा कर रही है, बल्कि इससे निवेशक भी प्रभावित हो रहे हैं। इन दलालों के कारण परियोजनाओं में अनावश्यक विलंब और अधिक व्यय हो रहा है, जिससे अंततः देश के औद्योगिक और आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त, आम नागरिकों और छोटे उद्यमियों के लिए प्राधिकरण से संबंधित काम करवाना अत्यधिक मुश्किल हो गया है।
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संस्था की ओर से दिए गए सुझाव:-

1. प्रभावी कदम उठाए जाएं: प्राधिकरणों में डेवलपर नाम से बिचौलियों के हस्तक्षेप को खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं और ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

2. पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए: सभी कार्यों के लिए एक पारदर्शी और ऑनलाइन प्रणाली स्थापित की जाए, जिससे कोई भी व्यक्ति बिना किसी बिचौलिये के सीधे प्राधिकरण से संपर्क कर सके।

3. स्वतंत्र निगरानी तंत्र की स्थापना: प्राधिकरणों की गतिविधियों की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष एजेंसी का गठन किया जाए, जो यह सुनिश्चित करें कि प्रक्रिया सुचारू और पारदर्शी हों।

4. भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए: प्राधिकरणों के कार्यों में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को रोकने के लिए प्रभावी कानूनों और नीतियों को सख्ती से लागू किया जाए।

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